Monday 31 May 2021

बदले की आग (भाग 1)


 बदले की आग

भाग 1


            दोपहर का समय है, सूरज आसमान में ऐसे जल रहा है मानो बहुत क्रोधित हो, इसलिए पृथ्वी अपना संतुलन खो रही है और अपने पेट से कुछ गर्म लपटें निकाल रही है। दिन के मध्य में एक बस लंबे चक्कर पर पहाड़ की ओर तेजी से जा रही है। यह बस जिस रास्ते से गुजर रही है वह बहुत घना जंगल है, इस जंगल में सड़क बहुत घुमावदार है, और बहुत गहरी घाटियाँ हैं। इस जंगल में डाकू अक्सर आने वाले गाडीयोंको रोकते हैं और लूट लेते हैं, और कभी-कभी यात्रियों को मारकर गहरी खाई में फेंक देते हैं। ये खाईयाँ इतनी गहरी है की उस खाई मे गिरने के बाद कोई भी जिंदा लौटकर नही आया है और कई गाडीयोंकी खबर ही नहीं है, और कोई भी डर के मारे घाटी की तलाशी लेने नहीं गया है। इस जंगल में और इन घाटियों में कई तरह के जंगली जानवर पाए जाते हैं। इस जंगल में बाघ, शेर, भालू, हाथी, बंदर, लोमड़ी, बंदर, भेड़िये, लकड़बग्घा और कई अन्य क्रूर जानवर हैं, और इससे भी ज्यादा भयानक डाकू हैं। इसलिए कोई किसी को खोजने की कोशिश नहीं कर रहा है।

         अब हम अपनी बस की ओर रुख मोड लेते हैं। क्योंकि हमारी कहानी असल में इसी बस से शुरू होती है। आइए देखें कि बस में क्या चल रहा है। बस में सवार कुछ यात्री गर्मी की वजह से परेशान होते हैं, जबकि खिडकी के पास बैठे हुए यात्री बस पेड़ के नीचे से गुजरने पर ठंडी हवा चलने पर खुश होते हैं। कंडक्टर की सीट पर बैठा कंडक्टर उसका हिसाब कर रहा है। (आयु लगभग चालीस के आसपास)

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       पिछली सीट पर बैठे बुजुर्ग दादाजी (उम्र 70 से 75 साल) ड्राइवर पर चिल्लाते हैं, "ओ ड्राइवर भाई, बस को धीरे चलाओ, बस की पिछली सीट पर बैठने के कारण उछल-उछल के हमारी हड्डियां टूट गईं है यार।" ड्राइवर (उम्र ४० से ४५ साल) उनको जवाब देता है, "चाचा, हम यहाँ नहीं रहना चाहते, आगे घने जंगलों और घाटों की सड़क है, हमे अंधेरा होने से पहले जंगलों और घाटों को पार करना होगा।" बूढ़े दादाजी के बगल में बैठे उनकी नन्हीसी पोती 'परी' (उसका नाम) (उम्र लगभग 7 से 8 वर्ष) उत्सुकता से अपने दादाजी से पूछती है, "दादाजी, अंधेरा होने से पहले हम उस जंगल से बाहर क्यों जाएं? उस जंगल में ऐसा क्या है कि हम उस जंगल में तब तक नहीं रह सकते जब तक कि अंधेरा न हो जाए? जबकि जंगल बहुत सुंदर है, साथ में बहुत बड़े बडे पेड़, ऊँची ऊँची पहाडिया है, उसमें से बहते हुए छोटे-छोटे झरने, मैंने किताब में पढ़ा है और टीवी पर भी देखा है।” आगे की सीट पर बैठी जोशी मौसी उसे समझाती हैं, "अरे बेबी, टीवी पर जंगल देखना अच्छा लगता है, लेकिन इस जंगल में भयानक डाकू हैं, बहुत दलिंदर है सब, कई गाडिया लुटी हैं उन्होने।" विद्या (उम्र २० से २१ वर्ष) बीच वाली सीट पर बैठी हुई झट से बोली, "क्या सचमे।"। 

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        यह विद्या एक अप्सरा की तरह है, बहुत सुंदर, गोरी-चिट्टी, लंबे काले बाल उसकी पीठ पर ढीले छोड़े हुए हैं, खिडकी के पास बैठने के कारण उसके कुछ बालोंकी बट उसके गालों पर आने के बाद ऊसकी हलकीसी स्माइल दिल को छु जाती है, वो जरासी तिरछी नजर से देखती हैं तो ऐसा लगता है जैसे कोई तीर हमारे सिने में घुस गया हो। उसके गुलाबी होंठ, मुस्कुराते हुए गाल, दुबला-पतला शरीर, मन को लुभाने वाली सुंदरता। ऐसी खूबसूरत लडकी जिसे देखके किसी को भी उससे प्यार हो जाए। जिसने अचानक से बोलने के कारण बस के सभी लोग उसकी तरफ देखने लगे "मैं डाकुओंको देखना चाहती हूं" उसने जारी रखा। "वे कोई सर्कस के जानवर नहीं हैं, बोल रही है मै उन्हे देखना चाहती हूँ," श्रीमती शर्मा (उम्र 35 से 36 वर्ष) ने थोड़ी टेढ़ी आवाज में कहा। तभी 'चंदू' (उम्र २९ से ३० वर्ष) विद्या के सामनेवाली की सीट पर बैठा हैं, वो अपनी वीरता दिखाते हुए उठा और शेखी बघारते हुए बोला, "इस बस में भी पुरुष हैं, (विद्या के बगल में बैठे टीना को हल्के से देखकर) जब मेरे जैसा बहादुर जवान इस बस में है तो कोई क्यों डरे?" यह सुनकर 'गोडबोले' (उम्र 40 से 45 वर्ष), जो थोड़ा पीछे बैठे थे, (थोड़ा झुककर) उन्होने कहा, "ओ मिस्टर, आप पहले अपनी चड्डी संभालो, कही पर भी अपनी हिरोगिरी मत दिखाओ, (सब जोर से हंसने लगते हैं)। आपको एक ऐसे आदमी की जरूरत है जो आपकी जान बचा सके।" उस समय चंदू कहता है, "अरे अंकल, आपके बाल खिडकीसे उड गये देखो।" यह सुनकर गोडबोले ने खिड़की से बाहर देखा और सिर  के बालो से हाथ घुमाया, तभी बस में सब हसने लगते है लेकिन चंदू के पास बैठा हू 'गौरव' जो इस कहानी का असली नायक है, उसका इन सब बातों पर ध्यान ही नहीं है, वह चुपचाप खिड़की से बाहर देख रहा है, जैसे की उसे पता ही नहीं है बस में क्या चल रहा है, वह ऐसे बैठा है जैसे की वो बस में ही नहीं है, वह अपने ही कुछ विचारों में खोया है।

     'गौरव' (उम्र 24 से 25 वर्ष) एक युवा, सुंदर, बलवान शरीर, मोटा-चौडा सीना, तगडी बाहे, होठों पर थोडीसी मुछे आई हुई, ऐसी पर्सनालिटी देखके कोई भी लडकी उसके प्यार मे गिर सकती है, विद्या को भी उससे प्यार हो गया है ऐसा उसे लग रहा है, वह थोड़ा मुस्कुराती है और चंदू से कहती है, "अरे चंदू, तुम्हारे बाजू मे कौन बैठा है, जिसका हमारी तरफ ध्यान ही नही है, क्या उनको सुनाई नहीं देता है?, या वो बोल नहीं सकते?," चंदू कहता हैं, "अरे मॅडम वो अपुनका जिगरी दोस्त है, उसको कुछ भी नही बोलने का, उसको कुछ बोला तो अपुनकी सटकती है।" "अपना भाई एकही बार आता है, लेकिन हवा करके जाता है, क्या..." "तू उसकी छोड, अपने सहेली को बोल ना आपुनसे बात करने के लिये।" ये सब चलते समय पाता ही नही चलता है की बस जंगल के बिचो बीच आ चुकी है।

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         बस एक-एक कर घाटी को पार करते हुए जंगल के बीचों-बीच कब आ गई पता ही नहीं चला। अचानक ड्रायवर ने बस को रोक दिया। बस में सवार कुछ लोग चिल्लाते हैं, "ए ड्राइवर, तुमने बस को जंगल में क्यों रोका?" "आगे सड़क में पत्थर हैं।" ड्राइवर बोला। "क्या ???" वही स्वर जो डर और आश्चर्य में सबके मुंह से निकला। एक यात्री ने पूछा, "अब क्या करें?" जोशी मौसी ने कहा, "अगर डाकू आ गएं तो...?" "ऐसे सड़क पर पत्थर उन्होंनेही लगाए होंगे, है ना?" विद्या के बगल में बैठी उसकी सहेली टीना थोड़ी डर डर के बोली। टीना एक खूबसूरत युवती है, लेकिन विद्या से थोड़ी कम खूबसूरत है, आमतौर पर विद्या की ही उम्र की होगी। चंदू ने कहा, "अरे डार्लिंग, तुम टेंशन क्यों लेती हो, मैं हूं ना, डाकुओंकी यहां आने की क्या हिम्मत, जब मैं यहा पर हूं, अगर वो यहां आ गये तो मै एक-एक को कुचल दुंगा।" तभी कुछ डाकू ऊपर के पहाड़ों से और नीचे घाटी से बस की ओर भागते नजर आ रहे हैं और कुछही देर मे बस को घेर लेते हैं उन्हें देखकर चंदू डर जाता है और सीट के नीचे छिप जाता है, सभी बहुत डर जाते हैं। हर कोई सोचता है कि वह अपनी जान कैसे बचाए, गौरव का इन सब बातों पर ध्यान ही नहीं है। वह नीरागस निगाहों से बस से बाहर देख रहा है, उसे पता ही नहीं की कब बस रुकी और कब डाकू आ गए। बस को घेरने के बाद, कुछ डाकू चारों ओर देखते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि कोई खतरा नहीं है। सुनिश्चित होने के बाद, एक पतला युवा डाकू जंगल की ओर देखता है और जोर से सीटी बजाता है, तभी जंगल से दो डाकू घोड़े पर सवार होकर बस की तरफ आते हैं। दिखने में क्रूर, हाथ में बंदूक, गले में बंधी बंदूक के कारतूसों का पट्टा। उनके माथे पर एक काला रंग का टिका है, उनकी आँखें लाल आग की चिंगारी की तरह हैं, एक डाकू की एक आँख में टिमटिमाता हुआ सफेद कुछ दिखता है, दूसरे की आँखें बहुत बड़ी हैं, झुर्रीदार मूंछें हैं, एक थोड़ा गंजा है। दोनों ही हट्टे-कट्टे दिख रहे हैं, वे अपने साथियों की ओर देखकर बोलते हैं, "जाओ अंदर, उनके पास जो भी हो लेकर आओ, अगर कोई सीधी तरह से ना दे तो काट डालो वही पर, अगर कोई शानपत्ती दिखाता है तो उसे घसिटकर बाहर लाओ।" उसी वक्त कुछ डाकू बस में चढ़ जाते है, एक डाकू ड्राइवर के सिर पर बंदूक रख देता है, दूसरा डाकू जोर से कहता है, "अगर तुम्हे अपनी जान प्यारी है तो तुम्हारे पास जो भी हो चुपचाप निकाल के देदो, अगर कोई शानपत्ती करेगा तो उसे यही पर काट देंगे।" "जाओ रे आगे, ले लो जो भी उनके पास है," तभी एक डाकूने कंडक्टर के पास जाकर कहा। "अय कंडक्टर, चल तुने कितना खजाना इकठ्ठा किया है चल निकाल जल्दि।" कंडक्टर ने घबराकर पैसे का बैग निकाला और उसे दे दिया। वह कहता है, "और वह चिलर कौन देगा? तेरा बाप?" तभी लटपटाता हूआ कंडक्टर चिलर उसके हाथो में डाल देता है। दूसरा, जो थोड़ा काना डाकू है, मज़ाक में दूसरी सीट पर बैठी आंटी के कान के पास बंदूक रखता है और कहता है, "ओह आंटी, क्या तुम मुझे अपना माल देती हो, या मैं तुम्हें एक गोली दूं .... हम्म .. हम्म ..... हम्म .. हम्म ..... हम्म।" और जोर से हंसता है, आंटी ने डरते हुए अपने बटुए में से पैसे निकाल कर डाकू को दे दिए, तभी डाकू महिला पर चिल्लाता है, "इन हाथो में जो सोने के कंगन है, और उस गले में जो सोने का हार है, क्या उसे गला काटकर लेलू। "ए पक्या, चाकू ला रे, इस आंटी का हार नहीं निकल रहा है।" तभी आंटी जल्दी से कंगन और हार निकालकर डाकू को दे दिए। वैसेही वो डाकू उसके बाजू मे बैठे मोटे आदमी को,"ए मोटे, तुझे क्या गोली पार्सल भेजु क्या?" वो मोटा आदमी फटाकसे पैसे निकालकर डाकू को दे देता है, डाकू फिरसे "और वो चेन जो तुम्हारे गले में है? तुम्हारा भी गला काटके निकालू क्या?" "ए पक्या ला रे चाकू, इसके मा की, सिधी भाषा मे समजतेही नही ये लोग।" वैसे, मोटे आदमी ने कहा, "अरे नहीं, यह चेन मुझे मेरी पत्नी ने मेरे जन्मदिन के लिए गिफ्ट दी है..." "तो मैं उन्हें तुम्हारा सिर गिफ्ट के रूप में भेजूंगा ..." डाकू थोड़ा मुस्कुराके बोला, उसी वक्त उस आदमी ने चुपके से अपने गले से चेन निकाल कर उस डाकू को दे दी।

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        पीछे की सीट पर बैठी छोटीसी 'परी' अपने दादाजी से पूछती है, "दादाजी, ये कौन लोग हैं?, और वे इस तरह पैसे क्यों मांग रहे हैं?", जिसका दादाजी जवाब देते हैं, "बेटा, यही वो डाकू है", 'परी' ने फिरसे सवाल किया, "तो इन्हे कोई नही रोकता?" "जिन लोगों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, उन्हें इन लोगों ने मार डाला।" दादाजी ने थोड़ा डरकर कहा। "तो अब हमे कोई नहीं बचाएगा?" परी ने फिर पूछा। दादाजी ऊपर देखते हैं और फुसफुसाते हुए कहते हैं, "भगवान की मर्जी, अगर उसके मन मे है तो वह हमे बचाएगा, अन्यथा ..." और दादाजी शांत हो गए और परी के मुंह पर हाथ रखा और उसे चुपचाप बैठने के लिए कहा। यह बात वो थोडासा काना डाकू है वो सुन लेता है, 'मन्या' जिसका नाम है, उसने कहा, "ए पक्या, वहा पीछे कुछ गुटर्गू चल रहा है देख तो, चरबी चढ गई है सालोंको, जा पिछे भी वसूली कर जा।" ये सुनकर कुछ डाकू पीछे की तरफ जाते हैं और कुछ थोड़ासा आगे की सीट की तरफ बढ़ जाते हैं। रम्या टीना के करीब जाता है और कहता है, "मॅडम क्या लाई हो हमारे लिये, जरा जल्दि दो, हमे और न तरसाओ" टीना बहुत डर जाती है और अपने फटाफट अपने पर्स से पैसे निकालने लगती है, तभी उसके पास बैठी 'विद्या' थोडासा बडबडाती है, "स्टुपिड..." तभी रम्या बोलता है, "अरे अंग्रेजी मैडम, चुपचाप तुम्हारे पास जो भी है, निकाल के दो, नहीं तो हमारी अंग्रेजी गोली इस कान में घुसकर उस कान से अंग्रेजी गाना गाते हुए बाहर निकलेगी।" थोडासा हसकर वो कहेता है, विद्या थोडासा गुस्सेसे देखती है और कुछ भी पर्याय ना होने के कारण उसके पर्स मे पैसे ढुंडने लगती हैपिछे गया हूआ गण्या डाकू थोड़ा गुस्से में कहता है, "यहाँ किसकी मचमच चल रही है..." इधर एक डाकू चंदू के सीट के पास जाकर चंदू को नीचे  छिपा हुआ देखकर, "क्या यहाँ कोई तहखाना खोजने का काम चल रहा है क्या?" और चंदू को गले से पकड़कर ऊपर खींच लेता है। वैसे ही चंदू बहुत डर जाता है और उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकलता, तभी डाकू कहता है, "अगर तहखाना खोदा गया है, तो क्या आप हमें वह खजाना देंगे जो मिला है, महाशय"। तभी चंदू अपनी जेब से बटूआ निकालकर उसमेसे पैसे निकालकर थरथराते हाथोंसे डाकू को दे दिए चंदू को पिछे सीट की तरफ ढकेलकर डाकू गौरव की ओर मुड़ता है और उससे कहता है, "ए हिरो, चल जल्दी से पैसे निकाल चल।" गौरव का उसकी तरफ ध्यान हीं नही है, वो सिर्फ खिडकी से बाहर देख रहा है, गौरव अपनी तरफ ध्यान नही दे रहा है ये समझतेही, वो डाकू गुस्से से आगे बढकार गौरव की कॉलर पकडता है, और उससे कहता है, "चरबी चढ गई है क्या ज्यादा, मै जो बोल रहा हू वो समजमे नही आता?, या फिर सुनाई नही देता?" जैसे ही गौरव को पता चलता है कि किसी ने उसका कॉलर पकड़ लिया है, वह गुस्से में पीछे मुड़कर देखता है, उसकी आँखें गुस्से से लाल हो जाती हैं, गौरव की नज़र और डाकू की नज़र मिलते ही डाकू थोड़ा डर जाता है, और अपने आप को संभालकर थोड़ा मुस्कुराता है और अपने साथियों से कहता है, "ए मन्या इधर देख, य गुस्से से देख रहा हैं, इसकी मां कि मै तो डर गया यार!” और डरने की एक्टिंग करता है, तभी सब हंसने लगते हैं। वो डाकू फिर से गौरव का कॉलर पकड़ लेता है और गौरव से कहता है, "ए, बहोत हो गया तुम्हारा नाटक, चल पैसे निकाल चल।" "कॉलर छोड़" गौरव डाकू से गुस्से में बोलता है, तभी डाकू दूसरों से फिर मजाक में कहता है, "अरे ये तो बोलता है, और वो भी गुस्से में।" सभी डाकू फिर हंसने लगते हैं। चंदू थोड़ी हलकी सी आवाज में बोलता है, "अब ये तो गया", यह सुनकर डाकू थोड़ा सा गुस्से से, "ये देखो ये भी बोला।" डाकू गुस्से में गौरव का कॉलर पकड़ लेता है और उसे बाहर निकालने की कोशिश करता हूआ बोलता है, "ये सब इसकी बजह से हो रहा है, ए चल बाहर निकल चल" ऐसा बोलते हुए गौरव को खींचने की कोशिश करता है, लेकिन उसकी बात पुरी होते ही गौरव उस डाकू को कुछ समझने से पहले एक झटके में खिड़की का शीशा तोडकर उसे खिड़की से बाहर फेंक देता है, ये इतनी जल्दि से होता है कि किसी को कुछ पता ही नहीं चलता कि क्या हुआ है, सभी को सिर्फ खिडकी के शिशे टूटनेकी आवाज आती है, और बाहर कुछ जोर से गिरने की आवाज आती है, उसके बाद डाकू की एक बेहोश चीख थी "उई .... माँ ... "। ऐसा होते ही बस के अंदर के और बस के बाहर के डाकू थोडेसे हडबडा जाते है, और बस मे से पिछे के यात्री आगे की तरफ और गौरव के आगे के यात्री पिछे की तरफ हैरानी से देखने लगे। उन्हें अभी भी नहीं पता था कि यह किसने किया। सामने वाले दरवाजे पर खडा डाकू पीछे वाले डाकू को नजारों से इशारा करके उससे यह किसने किया ये देखने का इशारा करता है। तभी वो डाकू धिरे-धिरे दबे पाव से आगे की तरफ बढता है। उसी समय गौरव खड़ा हो जाता है।रुबाबदार शरीर और मजबूत छाती के 'गौरव' को खडा हूआ देखकर बस में बैठे यात्रीयोंको थोडी राहत महसूस करते हैं, लेकिन विद्या अपना होश खो देती है और गौरव को देखती रहती है। वहीं बस में सवार डाकू थोड़े डरे हुए हैं। गौरव जैसे ही खड़ा होता है, उसकी तरफ आने वाला डाकू वही के वही रुख जाता है। लेकीन चंदू जोर से सिटी बजाता है और बस में सवार यात्रियों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। गौरव अपनी सीट से बाहर आता है, 'रम्या' जो विद्या से पैसे लेने की कोशिश कर रहा था, गौरव की ओर बंदूक रोकने की कोशिश करता है, लेकिन उसके कुछ करने से पहले, गौरव उसके घुटनेपर जोर से किक मारता है, किक मारने से रम्या का पैर घुटने से टूट जाता है, और वह जोर से चिल्लाने लगता है गौरव एक हाथ से ऊपर से रम्या का सिर पकड़ लेता है और दूसरे हाथ से उसकी ठुड्डी पकड़ लेता है और उसकी गर्दन तोड़ देता है, वैसे ही वो मर कर उसी जगह गिर जाता है। यह देखकर उसके आगे का मन्या चाकू लेकर दौड़ता है, और गौरव को मारने की कोशिश करता है, लेकिन गौरव नीचे बैठ जाता है और मन्या के पेट में पंच मारता है। वैसेही मन्या अधमरा हो जाता है, गौरव ने मन्या के चाकू का हाथ पकड़ लिया और फिर से उसके कंधे के पास पंच मारा, इस कारण उसका चाकू अपने आप गिर जाता है। वो चाकू हाथ में लेकर गौरव खड़ा होता है और मन्या के पेट में जोर से किक मारता है वैसेही मन्या जोर से पिछे उडकर ड्रायवर के आगे की कांच तोडकर बाहर जा के गिरता है। तभी पिछे की तरफ से आने वाला डाकू गौरव को बंदूक से गोली मारने की कोशिश करता है, उसी वक्त गौरव कुछ ही पल मे पीछे की तरफ मुडकर चाकू उस डाकू को मारता है, वो चाकू डाकू के दाहिने सिने के उपर कंधे मे घुस जाता है, उसी वक्त डाकू के हाथ की बंदूक नीचे गिर जाती है और वो भी नीचे गिर जाता है। कंडक्टर के पास का डाकू गौरव को मारने दौड़ता हुआ आता है लेकिन गौरव अपने दाहिने हाथ की कोहनी को पीछे खींच लेता है और पीछे के डाकू के सीने में कोहनी मार देता है। वैसे ही वो वही जगह में रुख जाता है और थोड़ा आगे की ओर झुक जाता है, और सीने में लगी कोहनी के कारण उसके मुंह से खून निकलने लगता है। और बिना समय गँवाए गौरव एक हाथ से डाकू की कॉलर को और एक हाथ से कमर की बेल्ट को पकड़ लेता है, और उसे घुमाकर उसकी पीठ पर पटक देता है। वो डाकू उसी जगह पर मर जाता है। तभी गौरव दरवाजे पर खड़े डाकू की तरफ दौड़ता है और उसे बिना कुछ समझने से पहले ही उसके पेट में जोर से लात मार देता है। वैसे ही वो डाकू दरवाजे के साथ दूर बाहर जाकर गिर जाता है। ये सब होने के बाद गौरव पिछली सीट के पास खड़े डाकू को देखता है और उसकी तरफ चलने लगता है। भयभीत होकर डाकू ने परी के सिर पर बंदूक रख दी और कहा, "आगे मत आना, अगर तुम आगे आओगे तो मैं इसे गोली मार दूंगा।" ये देखकर परी के दादाजी डरे हुए हैं और डाकू से यह कहते हुए विनती करते हैं, "छोड़ो मेरे बच्ची को, मेरी छोटी सी पोती, उसने क्या बिगाडा है तुम्हारा?" "ए बुड्ढे," डाकू ने दादाजी को पीछे ढकेलते हुए कहा, "चुप रहो," और गौरव को देखते हुए, "आगे मत आना, नही तो मैं इसे सच मे गोली मार दूंगा।" गौरव आगे ही बढता है और आगे आते आते कहता है, "शौक से मार डालो,  इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन उसे मारने के बाद, मैं तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ूंगा।" ये कहते हुए गौरव आगे आता है और रास्ते मे पडे हुए डाकू ने (जिसके कंधे मे चाकू लगा है) अपने हाथ में चाकू पकड़ रखा है, और चिल्ला रहा है, गौरव अपने पैर से चाकू वो दबाता है तो वो डाकू जोर-जोर से चिल्लाने लगता है, यह देखकर बंदूक पकडा हुआ डाकू बहुत डर जाता है, उसकी ये हालत देखकर अपने पैर से चाकू पर जोर देकर गौरव ने सामने वाले डाकू से कहा, "अगर तुम जिंदा रहना चाहते हो, तो उसे छोड़ दो, नहीं तो तुम सोच लो, तुम्हारी मर्जी ...", यह सुनकर डाकू गहरी सोच मे डुब जाता है, तभी गौरव डाकू के पास जाकर उसकी बंदूक परी के सिर से हटाकर उपर करता है, तो वो डाकू बहोत डर जाता है, वह अधमरा होकर कांपता हुआ खड़ा हो जाता है। तभी गौरव उसके चेहरे पर पंच मारकर उसके हाथ से बंदूक छीन लेता है। डाकू की नाक और मुंह से खून बहने लगता है। डाकू अपने मुंह से खून पोंछता है, डाकू उस खून को देखकर और डर जाता है, लेकिन कुछ समझने से पहले गौरव उसके पेट मे जोर से किक मारता है, वैसे ही वो डाकू पीछे की खिड़की की काच तोड़कर दूर बाहर जाकर गिर जाता है।

                                                                                [..... बाकी अगले भाग में......]

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बदले की आग (भाग 1)

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